भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्यों खोई पहचान साथी / नीलाभ
Kavita Kosh से
पाया है धन मान साथी
अब तो तजो गुमान साथी
छोड़ो सब अभिमान
बड़े-बड़े हैं गले लगाते
जी भर कर गुन तेरे गाते
उज्ज्वल है दिनमान
फिर क्यों तेरे मन में भय है
कैसा यह दिल में संशय है
क्यों साँसत में जान साथी
सब सुख है तेरे जीवन में
कलुष भरा क्यों तेरे मन में
जग सारा हैरान साथी
जनता तुझ से आस लगाए
तू धन दौलत में भरमाए
कैसा यह अज्ञान साथी
हत्यारों में जा कर हरसे
अपनों पर तू नाहक बरसे
क्यों खोई पहचान साथी