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क्यों जाते हैं रास्ते? / महेश सन्तोषी

जाने तुम्हारे घर तक क्यों जाते हैं रास्ते?
जब रास्ते में तुम्हारा घर ही नहीं बचा।

जहाँ तक प्यार की सरहदें जाती हैं,
कोई रास्ता वहाँ तक नहीं जाता।
बांहें भले ही बांहों मंे सिमट जाती हैं,
प्यार किसी सीमा में नहीं सिमट पाता।
जाने कहाँ से आती हैं, तुम्हारे आने की आहटें
हम जानते होते तो देते तुम्हें भी बता।
जब रास्ते में तुम्हारा घर ही नहीं बचा।

तुमसे जुड़ा उम्र का हिस्सा,
प्यार की ज़िन्दगी में था एक हादसा-सा,
मिट गये ओठों और हथेलियों पर लिखे अक्षर
अब कोई किसी को नहीं जानता।

हम मान लेंगे अपने को अनजान, अजनबी,
तुमने तो यादों तक का सिलसिला नहीं रखा।
जब रास्ते में तुम्हारा घर ही नहीं बचा।

जाएँगे तुम्हें ढूंढ़ने अब कहाँ-कहाँ?
तुम भीड़ से आये थे, भीड़ में ही खो गये।
देखे भी नहीं और ना सपने कभी बुने,
जीना था जिसे जी लिया फिर अलग हो गये।

हम प्यार की किताब को बैठे हैं खोल कर,
शायद हमें मिल जाये तुम्हारा कहीं पता।
जाने तुम्हारे घर तक क्यों जाते हैं रास्ते?
जब रास्ते में तुम्हारा घर ही नहीं बचा।