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क्यों लगता है जैसे तुमने दीप जलाये प्यार के / रंजना वर्मा
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क्यों लगता है जैसे तुमने दीप जलाये प्यार के।
क्यों लगता है पतझड़ आँखें देखें स्वप्न बहार के।
चुन चुन फूल कपास कभी जो बाती हम ने पूरी थी
क्यों जाते हैं बिखर-बिखर से रेशे उसके तार के॥
चंदन वन की नन्हीं कोपल-सा सहमा-सहमा जीवन
उसे नोच लेने को तत्पर क्यों रिश्ते संसार के॥
चला गया मधुमास कली उन हाथों ही बदनाम हुई
जिनका स्वत्व सहेज रही थी सब अपनापन हार के॥
चिथड़े हुए कफ़न के अर्थी गली-गली नीलाम हुई
लाशें बिकने चलीं बीच इस भरी हुई बाज़ार के॥