क्यौ मन मे नहि पोसओ भ्रान्ति / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
कारगिलक चोटी पर चुप्पे चढ़ि आयल छल किछु शैतान
जागरणक शुभ अवसर अबिते जागि गेल ई देश महान।
शौर्य वीर्य सम्पन्न सैन्य दल कयलक सबकेँ चकनाचूर,
बाल-बृद्धसँ जेँ युवकक स्वर धरि बाजि उठल बस एक्के सूर।
मूड़ी पकड़ि मचोड़ब, तोड़ब कण्ठ न जा,ता दम नहि लेब,
रूण्ड-मुण्डसँ पाटि धराकेँ चण्डिकाक खप्पर भरि देब।
मूसलजँ जेँ मानय तेँ ने मुसलमान राखल छै नाम
तेँ मूसलसँ धूरि-थकुचि कय करू एकर सब काम तमाम।
हुक-हुक करितो एखनहु धरि ई कइए रहल उपद्रव घोर,
अछि अखज्ज ताधरि नहि मानत, जाधरि देब न दण्ड कठोर।
पकड़ि पछाड़ि, पटकि पृथ्वी पर पीठक खल्ला लियऽ उतारि,
रक्तबीज थिक तेँ निर्बीज बिना कयने नहि मानत हारि।
काँचे कड़चीकेर छड़ीसँ गत्र-गत्रकेँ दिऽ ततारि,
चंचल चपलासन चमकै छनि चामुण्डाक करक तरूआरि।
घन घमण्ड सम गर्जल देशक यौवन पुनि भरलक हुंकार,
काल नाग सम-जल-थल-नभसेना छोड़य रहि रहि फुफकार।
राखि अटल विश्वास हृदयमे सौंसे देश भेल उठि ठाढ़,
चकित विश्व चकुआय रहल अछि देखि देश-प्रति-प्रगाढ़।
शान्ति-प्रिय सब दिनसँ रहले अछि भारत, तेँ चाहय शान्ति,
सब किछु सहितो रहत शान्त से क्यौ मनमे नहि पोसओ भ्रान्ति।