क्रान्तिकारी अकेला था 
सोच रहा था 
इतनी क्रान्तियाँ करके भी अकेला हूँ 
क्यों अकेला हूँ ?
 
इसी क्रांति के कारण जेल गया 
पुलिस की मार खाई
और पत्नी एक कवि के साथ चली गई ! 
मैंने कितना समझाया कि क्रान्ति ही ज़रूरी है 
कविता का क्या है 
किसी के भी साथ चली जाएगी 
किसी का भी हमबिस्तर हो जाएगी
किसी के भी भीतर घुस जाएगी 
किसी को भी अपना बनाएगी
और क्रान्ति की लपट में 
सब झूठ जल उठेंगे
सत्ता का सिंहासन हिल उठेगा 
एक ज़लज़ला आएगा ! 
सब कुछ टूटकर बिख़र जाएगा 
चारों तरफ़ झण्डा और डण्डा लहराएगा
पत्नी ने कहा था —
तुम क्रान्तिकारी हो,महाक्रान्तिकारी बनो 
मैं कवि के साथ जा रही हूँ 
मेरा साथ उसे महाकवि बनाएगा
क्रान्तिकारी अकेला था 
सोच रहा था —
इस कवि को क्रान्तिकारी बनाकर 
झुलसा देना है
उसे तहस - नहस कर देना है
उसकी चेतना में आग भर देना है 
पर कवि की कविता उसके बाहर निकलकर 
वसन्ती हवा बन पीले सरसों के पौधों के साथ खेल रही थी 
किसी भिक्षुक के साथ चल रही थी
किसी कुटिया के चूल्हे में आग बन जल रही थी 
किसी नदी की लहरों पर सवार होकर बह रही थी 
किसी बच्चे की आँखों में मचल रही थी 
किताबों के छपे शब्दों में निखर रही थी 
वह बढ़ रही थी,  आगे और आगे बढ़ रही थी
क्रान्ति तो एक उबाल थी
आई और चली गई 
बहुत कुछ तहस - नहस कर गई
और क्रान्तिकारी अकेला था 
कवि क्रान्तिकारी की पत्नी की चेतना को अपने साथ लिए 
महाकवि बन गया था !