भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्रान्ति का गीत / कांतिमोहन 'सोज़'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तूफ़ान उठाती आ
बिजली चमकाती आ
पीले पत्तों को खाद बना नव सुमन खिलाती आ ।।

मुरझाए तेरे फूल सभी सूखी हर डाली है
मुट्ठी भर हत्यारों ने सबकी नींद चुरा ली है
मूँछों पर देता ताव यहाँ अन्याय अकड़ता है
हैरानी की है बात कि तेरा खप्पर ख़ाली है
आवाज़ लगाती आ
हाँ आग लगाती आ
दुष्टों के शीश उड़ा उनकी जयमाल बनाती आ ।
पीले पत्तों को खाद बना नव सुमन खिलाती आ ।।

फूलों को खिलने दो शूलों के डंक कुचल डालो
सहमे-सहमे नन्हें पौधों में नवजीवन डालो
धरती के निर्मल पानी पर एकाधिकारवाले
बरगद के तन पर चोट करो और शाख़ काट डालो
आ न्याय दिलाती आ सबको हुलसाती आ
इस तपती हुई धरित्री पर अमरित बरसाती आ ।
तूफ़ान उठाती आ
बिजली चमकाती आ
पीले पत्तों को खाद बना नव सुमन खिलाती आ ।।

रचनाकाल : मार्च 1978