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क्षणिकाएँ-२/रमा द्विवेदी
Kavita Kosh से
१-मौसम के रंग ,
निश्चित समय पर
बदलते हैं,
पर रिश्तों के रंग तो
पल-पल बदलते हैं।
२-रेखाएँ खींचना मगर,
हथेली की लकीरों की तरह,
कम से कम मिल सकें ,
कहीं पर तो हम।
३-धरती की परिधि पर,
सूर्य की तरह
चक्कर मत काटना,
मिलन के लिए,
परिधियों का टूटना,
ज़रूरी है।
४-कभी तुम तूलिका बनो,
कभी मैं कैनवास बन जाऊँ,
कभी तुम मुझमें रंग भरो,
कभी मैं तुझ में डूब जाऊँ।
५-रंगों का समन्वय,
कुछ इस तरह करना,
जीवन का कोई कोना,
रह जाए न उदास।
६-ज़िन्दगी की एक भूल,
कई खुशियों को,
निगल सकती है।
७-ईर्ष्या' मनुष्य को,
बना देता है
खूख़्वार शेर|
८-`अहंकार' सुनामी से,
कम नहीं
वह पल भर में,
बहुत कुछ,
लील जाता है ।