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क्षणिकाएँ-2 / रचना श्रीवास्तव

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 क्षणिकाएँ
 (1)
रात के अँधेरे में
नन्हा तारा सिसक रहा था
और धरती पर
एक माँ
(2)
बर्फ पर बे खौफ
बहुत देर तक चलती रही
वो जानती थी
के क़दमों के निशान
उस को लौटने की दिशा देंगें
बरसते बर्फ के फूलों को
आँचल में समेट
जब वो पलटी
समय की सर्द हवा
सारे निशान मिटा चुकी थी
(3)
ठंढ से जले हाथों में
चिटके गलों को ढांपे
बर्फ के थपेड़ों से लड़ रही थी
कि हवा का गर्म झोंका
उसे पिता की गोद सी
गुनगुनाहट दे गया
वो जानती थी
ये हवा आई है
  उसी गाँव से
जहाँ गांठ लगे ऊन से
बुन रही थी
स्वेटर उस की माँ