क्षणिकाएँ-2 / शमशाद इलाही अंसारी
1.
बस आज के दिन का इंतज़ार करो
और बस और हमसे प्यार करो|
तुम्हारा सीना चूमेंगे जी भर कर
बस थोडा़ और मुझे बेकरार करो|
(रचनाकाल: 20.09.2009)
2.
तेरे जलवों की सुबह हो तेरे गेसुओं की शाम
मेरे हाथों पे सूरज हो तेरे होंठों पे चाँद,
महकता रहे मेरे जिस्म पे तेरे बदन का चंदन
आँखे बन्द रहें यूँ ही बस ये ख़्वाब चढे़ परवान।
(रचनाकाल: 02.11.2002}
3.
ज़माने को इस ज़माने से बचा लो
बडी़ उलटी हवा चली है,
ग़ैरत को इस बेग़ैरत से बचा लो
बडी़ उलटी हवा चली है।
(रचनाकाल: 30.08.2002)
4.
वो जो उजले हैं तन के
भीतर से काले बहुत हैं,
फ़ूल से बरसते हैं मुँह से
लेकिन मन में नाले बहुत हैं,
नज़र से नज़र नहीं मिलेगी, चाहे कर लो कितनी भी कोशिश
यही वक़्त है समझ लो उनको, ऐसे दिलों में छाले बहुत हैं।
(रचनाकाल: 21.07.2002)
5.
गुज़री बातें भूल कर चलो नई शुरुआत करें,
साल के इस नये सिरे पर प्यार की बरसात करें।
मेरे घर से कोई न जाये आज बिन पिये,
सुरूरे इश्क अब न उतरे आओ ये इक़बाल करें।
(रचनाकाल: 01.01.2003)
6.
ये किसका लहू मेरे जिगर से निकला
मेरा कातिल मेरा चाराग़र निकला,
रोशनी की तलाश में पहुँचा था जिसके दर
शेख़ ने दरवाज़ा खोला तो अंधेरा निकला ।
(रचनाकाल: 20.08.2003)