क्षुद्र जीव-जन्तु / अन्योक्तिका / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
खग - चढ़थि माथ, कटु मधु कहथि, नोचथि दल, फल खाथि
तरु-कोटर कत की न कय सुखितहिँ खग उड़ि जाथि।।68।।
कोक-कोकिल -
कोकिल मधु भरि काकली सुना सुताबय गाबि
काक रटय कटु किन्तु हठि निन्य जगाबय आबि।।69।।
सुग्गा - हरित पाँखि पन्ना रतन, लालक लाली लोल
रहितहुँ पोसइत क्यौ न शुक! जोँ न राम धुनि बोल।।70।।
मयूर - घन धुनि सुनितहिँ शिखी शत शिखा मुक्त सत-रंग
नृत्य निरत सिर मुकुट पुनि पद लखि मन बदरंग।।71।।
बक - पच्छ स्वच्छ सर सरस बसि, मीन रूप धर ध्यान
नीर-छीर बिनु हस - गुन बक बुड़िबक अभिधान।।72।।
नीलकंठ - एक मात्र सुर, शिखर वसु, विजया-प्रिय, द्विज योग
नील कंठ शुभ लक्षो, विष - शूल न दुर्योग।।73।।
काक - कहि पहु आगम शुभ सगुन पर संतानहु पालि
भोर जागि जगबय, तदपि कटु-रव काग क गालि।।74।।
बाज - बधिक हाथ पड़ि खर-नखर, स्वजन-विरोधी बाज
लोभ लेश वश बधह द्विज, आबहु आबह काज।।75।।
भ्रमर - उपवन आङन मालती लता रूप रस वास
चंचरीक चंचल चलल करय कुटज - वन रास।।76।।
साप गनगुआरि -
बिनु पद अहि! अहँ पवन गति, केवल बल उर ओज
गनगुआरि शत पद चलय, गज भरि पुरय न रोज।।77।।