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खंजर / मिख़अईल लेरमन्तफ़ / मदनलाल मधु

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बेहद प्यारे हो तुम मुझको, ओ, मेरे इस्पाती खंजर,
तुम हो ठण्डे, तुम चमकीले, रहते मेरे संगी बनकर,
चिन्तन में डूबे गुर्ज़ी ने बदले के हित तुम्हें बनाया,
युद्ध-भूमि के लिए मुक्त चेरकासी ने था सान चढ़ाया ।

विदा-घड़ी में किसी हाथ ने तुम्हें प्यार से मुझे दिया था,
भूल न जाऊँ उसे कभी मैं, इसीलिए तो भेंट किया था,
उस दिन नहीं बही थी तुम पर पहली बार लहू की धारा —
तड़प, वेदना के आँसू का चमक उठा था मोती प्यारा ।

और जमीं थीं वे दोनों ही काली-काली आँखें मुझपर,
रहीं देखती अपलक मुझको, किसी अजानी पीड़ा से भर,
लौ की फड़-फड़ से फल तेरा जैसे कभी चमक, धुन्धलाता,
वैसे ही वे कभी चमकतीं, कभी अन्धेरा उनमें छाता ।

तुम्हें बनाया मेरा संगी, तुम जामिन हो मूक प्यार के,
मुझ पंथी के लिए लक्ष्य हो, तुम निष्ठा के, प्यार-सार के,
हाँ, मैं कभी नहीं बदलूँगा, दृढ़ कर लूँगा अपना अन्तर,
उसी तरह से, उसी तरह से, जैसे तुम दृढ़ संगी खंजर ।

1838
 
मूल रूसी से अनुवाद : मदनलाल मधु

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            Михаил Лермонтов
                      КИНЖАЛ

‎Люблю тебя, булатный мой кинжал,
‎Товарищ светлый и холодный.
Задумчивый грузин на месть тебя ковал,
На грозный бой точил черкес свободный.

Лилейная рука тебя мне поднесла
‎В знак памяти, в минуту расставанья,
И в первый раз не кровь вдоль по тебе текла,
Но светлая слеза — жемчужина страданья.

И черные глаза, остановясь на мне,
‎Исполненны таинственной печали,
‎Как сталь твоя при трепетном огне,
‎То вдруг тускнели, то сверкали.

Ты дан мне в спутники, любви залог немой,
И страннику в тебе пример не бесполезный:
Да, я не изменюсь и буду тверд душой,
‎Как ты, как ты, мой друг железный.

1838 г.