खंड-18 / बाबा की कुण्डलियाँ / बाबा बैद्यनाथ झा
चाहोगे उपलब्धियाँ, जीवन कर दो होम।
तब ही होगी रोशनी, जब पिघलेगा मोम।।
जब पिघलेगा मोम, त्याग बिन क्या मिलता है।
कुछ पाने से पूर्व, बहुत खोना पड़ता है।
कह ‘बाबा’ कविराय, श्रेठता तुम पाओगे।
अपने दिल से पूछ, त्याग करना चाहोगे।।
दुर्जन होता कोयला, कभी न करना स्नेह।
उष्ण जला दे अन्यथा, काली कर दे देह।।
काली कर दे देह, दूर रहना है उससे।
मत रख तुम सम्पर्क, कष्ट ही मिलता जिससे।
कह ‘बाबा’ कविराय, हितैषी होते सज्जन।
सबको दे संताप, हमेशा जो है दुर्जन।।
माया अति बलवान है, सब इसके आधीन।
त्रिगुण फाँस ले हँस रही, करके सबको लीन।।
करके सबको लीन, वही सब नाच नचाती।
काम क्रोध मद लोभ, दिलाकर नित्य फँसाती।
कह ‘बाबा’ कविराय, कहाँ कोई बच पाया।
मायापति को छोड़, शेष को ठगती माया।।
चमकाता व्यक्तित्व निज, जो भी प्रतिभावान।
ईश्वर आकर विवश हो, दे इच्छित वरदान।।
दे इच्छित वरदान, कर्म का फल ही मिलता।
कीचड़ के ही मध्य, कमल है हरदम खिलता।
कह ‘बाबा’ कविराय, दिव्य पौरुष दिखलाता।
वही सफल इन्सान, भाग्य खुद ही चमकाता।।
वन में कुछ पल घूमने, से होता वनवास?
टूट गई तलवार तो, मत समझो सन्यास।
मत समझो सन्यास, अभी है ताकत बाँकी।
मुझे नहीं ललकार, दिखा दूँ क्या मैं झाँकी?
कह ‘बाबा’ कविराय, शेष है साहस मन में।
मत समझो कमजोर, अगर मैं घूमूँ वन में।।
यह आत्मा तो है अमर, अक्षय शाश्वत धीर।
जीर्ण वस्त्र-सा यह सदा, बदले नवल शरीर।।
बदले नवल शरीर, कर्म जो जैसा करता।
बार-बार ले जन्म, योनि अनुरूप भटकता।
कह ‘बाबा’ कविराय, रहे तटस्थ परमात्मा।
ईश्वर का ही रूप, जानिए है यह आत्मा।।
ईश्वर तो हैं एक ही, है विभिन्न बस नाम।
भाषाओं के भेद से, कहो खुदा या राम।।
कहो खुदा या राम, भेद जो मन में करता।
वही मूर्ख नादान, जहर सबमें है भरता।
कह ‘बाबा’ कविराय, शेष यह जग ही नश्वर।
सर्वधर्म समभाव, सिखाते सबको ईश्वर।।
संयम को भी जानिए, है यह भीषण युद्ध।
लड़ना है इसमें सदा, अपने आप विरुद्ध।।
अपने आप विरुद्ध, लड़़ें हम बोलो कैसे।
प्रति द्वंद्वी लें मान, करें हम बिल्कुल वैसे।
कह ‘बाबा’ कविराय, अधिक हो या हो कुछ कम।
करें सतत अभ्यास, तभी हो खुद पर संयम।।
संरक्षण आतंक को, देता है जो देश।
उसे सुधरने मात्र से, बदलेगा परिवेश।।
बदलेगा परिवेश, निपट लें उससे पहले।
कुटिल चाल पहचान, उसे जो कहना कह ले।
कह ‘बाबा’ कविराय, दनुज बन करता भक्षण।
देकर उसको दंड, रोक दें अब संरक्षण।।
पूरी वसुधा ही यहाँ, अपना है परिवार।
द्वेषरहित सहभागिता, रखकर बाँटे प्यार।।
रखकर बाँटें प्यार, यहाँ जब सब हैं अपने।
रहे परस्पर प्रेम, पूर्ण हो सबके सपने।
कह ‘बाबा’ कविराय, रहे आपस में दूरी।
इच्छाएँ प्रत्येक, करेंगे कैसे पूरी।।