होना है साहित्य का, सर्वांगीण विकास।
सम्मेलन ने आपने, रच डाला इतिहास।।
रच डाला इतिहास, युगों तक याद रहेगा।
जिससे पूछें आप, वही यह बात कहेगा।।
यह है ब्रह्मानन्द, कहें फिर जादू टोना।
जो भी लेगा स्वाद, तृप्त सबको है होना।
वैसे तो प्रभु सृष्टि की, है हर वस्तु अनूप।
पर नारी ही है यहाँ, देवी माँ का रूप।।
देवी माँ का रूप, सृष्टि इससे चलती है।
जग की हर सन्तान, इसी से ही पलती है।।
माँ का यह ऋणभार, उतर पाएगा कैसे।
सन्तति आज कृतघ्न, बनी है प्रायः वैसे।।
नारी की महिमा नहीं, होली कभी समाप्त।
कुछ औरत सीता अगर, शूर्पनखा भी व्याप्त।।
शूर्पनखा भी व्याप्त, उसी से है बदनामी।
सदा चाहती स्वार्थ, मिले बस उसको कामी।।
करती मात्र कुकृत्य, देख मर्यादा हारी।
सुन उनके ही नाम, कलंकित होती नारी।।
करता है जो देश का, बहुविध तीव्र विकास।
श्रेष्ठ कर्म से बस वही, लिख देता इतिहास।।
लिख देता इतिहास, मार्ग सबको दिखलाता।
लेकर सबका साथ, स्वर्ग भू पर है लाता।।
करके सार्थक जन्म, एकदिन जब वह मरता।
सब करते हैं याद, अनुसरण जग है करता।।
सबके चिन्तन भिन्न हैं, भिन्न-भिन्न है राय।
देखें बहुत विकल्प तो, सोचें सरल उपाय।।
सोचें सरल उपाय, बुद्धि खुद आप लगाएँ।
लें विवेक से काम, कल्पना सफल बनाएँ।।
रहे समर्पण भाव;जगत में सबकुछ रव के।
करें वही सत्कर्म, बने हित जिससे सबके।।
अटल बिहारी हो गये, चिरनिद्रा में लीन।
आता है हर जीव ही, बनकर कालाधीन।।
बनकर कालाधीन, कहो क्या वह मरता है।
जीवन का उत्सर्ग, देशहित जो करता है।।
जो करता सत्कर्म, जीतता दुनिया सारी।
पूजे उसको विश्व, बने जो अटल बिहारी।।
करते रहिए साधना, लोग करेंगे तंग।
देख पराक्रम आपका, वे होंगे फिर दंग।।
वे होंगे फिर दंग, कर्म ही ऐसा कर दें।
जो करते हैं व्यंग्य, जोश उनमें भी भर दें।।
मुड़कर देखें आप, साथ वे भी हैं चलते।
जग ही चलता संग, पराक्रम जो भी करते।।
भरता जो हरगिज़ नहीं, क्या है ऐसा घाव?
वह है भौतिक वस्तु से, रखना अधिक लगाव।।
रखना अधिक लगाव, दिलाता प्रतिपल बन्धन।
लोभ मोह आसक्ति, रखे जो करता क्रन्दन।।
वह लेता फिर जन्म, पूर्ति इच्छा की करता।
लेकर निज प्रारब्ध, दण्ड करनी का भरता।।
होते हैं सब जीव अब, विविध रोग से ग्रस्त।
आज प्रदूषण बढ़ रहा, इसीलिए सब त्रस्त।।
इसीलिए सब त्रस्त, साँस लेना भी मुश्किल।
संकट में सब प्राण, त्राण देना भी मुश्किल।।
प्राणवायु का लोप, त्राहि कह सब हैं रोते।
कटते जाते पेड़, दोष सब अपने होते।।
जपते हैं जो सर्वदा, जय जय राधेश्याम।
कान्हा खुद करते कृपा, सुन राधा का नाम।।
सुन राधा का नाम, कृष्ण ही खुद हैं राधा।
बस इनका हो ध्यान, कटेगी भव की बाधा।।
सबकुछ प्रभु को सौंप, कर्म जो विधिवत करते।
उनके छूटे प्राण, कृष्ण राधे ही जपते।