खंड-29 / पढ़ें प्रतिदिन कुण्डलियाँ / बाबा बैद्यनाथ झा
जगती पहले कामना, पुनि पाने का बोध।
होता है व्यवधान जब, जग जाता है क्रोध।।
जग जाता है क्रोध, बुद्धि फिर अपनी खोता।
करे अनर्गल कार्य, नाश तब निश्चित होता।।
देकर मद सम्मोह, सभी को माया ठगती।
कर लेते सब पाप, कामना जब भी जगती।।
करना है तो कीजिए, हरदम सच्चा प्यार।
हानि लाभ को देखना, कहलाता व्यापार।
कहलाता व्यापार, इसे जो भी समझेगा।
देख प्रपंची लोग, नहीं उससे उलझेगा।
जिसके मन में मैल, दण्ड उसको है भरना।
प्रभु हों या हो अन्य, प्रेम सात्विक ही करना।।
रहता है जब सर्वदा, पति-पत्नी में मेल।
दुख-सुख दोनों झेलते, ज्यों बच्चों का खेल।।
ज्यों बच्चों का खेल, हर्ष में सकुशल जीते।
निज बच्चों के साथ, सुधारस प्रतिपल पीते।।
उन दोनों के मध्य, प्रेम का सागर बहता।
सुखमय हो दाम्पत्य, स्वर्ग सा जीवन रहता।।
बढ़ता है शहरीकरण, बदल रहे हालात।
शहर गाँव को खा गया, यह चिन्ता की बात।
यह चिन्ता की बात, गहन चिन्तन आवश्यक।
सोचें बौद्धिक वर्ग, उचित मन्थन आवश्यक।।
अपनापन है लुप्त, अनय का पारा चढ़ता।
बदल रहा परिवेश, शहर-आकर्षण बढ़ता।।
देखा था जो पूर्व में, नहीं बचा वह गाँव।
पोखर दरवाजा नहीं, मिली न पीपल-छाँव।।
मिली न पीपल-छाँव, शहर सा सबकुछ लगता।
मन में मात्र प्रपंच, एक दूजे को ठगता।।
संस्कृति है अब लुप्त, नकल की उगती रेखा।
शहर बना अब गाँव, वहाँ पर जाकर देखा।।
दिनकर अपने आप में, थे कविता सम्राट।
धारदार थी लेखनी, था व्यक्तित्व विराट।।
था व्यक्तित्व विराट, काव्यमय पूरा जीवन।
पढ़कर उनका काव्य, प्रफुल्लित होते तन-मन।।
लिखकर कतिपय छन्द, बना हूँ मैं भी अनुचर।
नमन करें स्वीकार, आप हे कविवर दिनकर।।
भारत कभी न सोचता, किसी देश से युद्ध।
यह तो देता जगत को, परम अहिंसक बुद्ध।।
परम अहिंसक बुद्ध, शान्ति का है परिवाहक।
जबतक नीयत साफ़, डरो मत हमसे नाहक।।
रखते हैं तैयार, सैन्य दल खूब महारत।
नहीं अड़ाता टाँग, कभी भी अपना भारत।
गलत कमाई आपकी, भोग रहे कुछ लोग।
खुद भोगें निज कर्म से, विपदाएँ भव-रोग।।
विपदाएँ भव-रोग, कर्म ही उत्तरदायी।
जब होगा अपकर्म, बनेगा वह दुखदायी।।
सात्विक धन से आप, करें पुनि खूब भलाई।
नहीं करें हम आप, कभी भी गलत कमाई।।
रत्नाकर व्याधा प्रथम, थे डाकू कुख्यात।
बालमीकि के नाम से, हुए विश्व विख्यात।।
हुए विश्व विख्यात, लिखी जिसने रामायण।
मना जयन्ती आज, जगत करता है गायन।।
देते सब वक्तव्य, विज्ञजन चर्चित आकर।
अमर आपका नाम, ब्रह्म सम हे रत्नाकर।।
आता है प्रत्येक के, जीवन में संघर्ष।
यार कभी मत हारना, पा लोगे उत्कर्ष।।
पा लोगे उत्कर्ष, सीख लो पहले जीना।
पग-पग पर अपमान, उपेक्षा का विष पीना।।
जो है उद्यमशील, स्वर्ग वह भू पर लाता।
बनता सुखद भविष्य, भाग्य खुद चलकर आता।