खंड-3 / बाबा की कुण्डलियाँ / बाबा बैद्यनाथ झा
शादी श्रेष्ठ परम्परा, हो समुचित निर्वाह।
सबको करना चाहिए, वैदिक रीति विवाह।।
वैदिक रीति विवाह, कराओ भारतवासी।
सुखमय हो दाम्पत्य, रहे शादी विश्वासी।।
कह ‘बाबा’ कविराय, अगर चाहो बर्बादी।
धर्म सनातन त्याग, करो मनमानी शादी।।
आया साल अठारवाँ, जवां हुई तारीख़।
अब युवती को दीजिए, वर चुनने की सीख।।
वर चुनने की सीख, जमाने से खतरा है।
त्यागे अपनी लाज, जवानी पर पहरा है।
कह ‘बाबा’ कविराय, नहीं कौमार्य निभाया।
डिग जाते हैं लोग, सुने जब यौवन आया।।
मानव मन परिणत हुआ, स्वार्थी जैसे दैत्य।
आपस में सब लड़ रहे, संभव नहीं मतैक्य।।
संभव नहीं मतैक्य, करेंगे मारामारी।
घींच परस्पर टांग, गिराने की तैयारी।।
कह ‘बाबा’ कविराय, इसे ही कहते दानव।
आती मुझको लाज,कहूँ किसको अब मानव।।
भूलें आप अतीत को, सम्प्रति पर दें ध्यान।
केन्द्रित हों साहित्य पर, भला करें भगवान।।
भला करें भगवान, सदा वे अच्छा करते।
जो उनके हैं भक्त, कभी न किसी से डरते।
कह ‘बाबा’ कविराय, उच्च चोटी को छू लें।
जपना है हरिनाम, शेष जग को ही भूलें।।
हरदम जो जपता रहे, शिव का मंगल नाम।
उनके दर्शन मात्र से, पूरे हों सब काम।।
पूरे हों सब काम,सदा शिव-शिव जो बोले।
हो जाते निष्काम, सभी पापों को धो ले।
कह ‘बाबा’ कविराय, जपेगा जो भी बमबम।
उसे न मिलता क्लेश, खुशी से जीता हरदम।।
भोले बाबा सर्वदा, जिसपर रहें सहाय।
हरफनमौला वह रहे, कभी नहीं निरुपाय।।
कभी नहीं निरुपाय, हमेशा जो वह करता।
पूरे हों सब काम, नहीं वह आहें भरता।
कह ‘बाबा’ कविराय, सदा जो बमबम बोले।
कर देते उद्धार, भवानी-शंकर भोले।।
पुँछकट्टा गीदड़ बना, जंगल का सरताज।
खुली अदालत में हुआ, पहला भाषण आज।।
पहला भाषण आज, कहा सब पूँछ कटा लो।
व्यर्थ बना यह अंग, इसे अब शीघ्र हटा लो।
कह ‘बाबा’ कविराय, लगा इज़्ज़त में बट्टा।
सबने किया प्रहार, मरा वह फिर पुँछकट्टा।।
बहता जल निर्मल रहे, कहते सभी प्रबुद्ध।
धन को बाँटें व्यय करें, तब होगा वह शुद्ध।।
तब होगा वह शुद्ध, नहीं तो घटता जाए।
या होगा फिर नाश, उचित है बाँटे खाए।
कह ‘बाबा’ कविराय, नहीं धन सबदिन रहता।
धन जल मान पवित्र, रहे जो हरदम बहता।।
रानी थी पद्मावती, पूर्व आठ सौ साल।
बचे प्रतिष्ठा इसलिए, जौहर किया कमाल।।
जौहर किया कमाल, उसे इज्जत थी प्यारी।
दे दी अपनी जान, नहीं वह हिम्मत हारी।
कह ‘बाबा’ कविराय, अमिट वह आज कहानी।
थी भारत की शान, हुई है ऐसी रानी।।
बेच पकौड़े हो सके, जब उत्तम व्यापार।
रोजगार हमसब करें, कहती है सरकार।।
कहती है सरकार, कमाकर सारे खाओ।
रहो स्वस्थ आबाद, खटो फिर मौज उड़ाओ।
कह ‘बाबा’ कविराय, हाथ में पकड़ हथौड़े।
लेकर प्रभु का नाम, खुशी से बेच पकौड़े।।