खटमल के देखऽ मनमानी
हरदम करै छै खींचा-तानी
जन्नें-तन्नें सूंग धसावै
लहू पियै छै टानी-टानी।
बालें-बुतरू आरो रानी
सभै पियै छै जानी-जानी
खटिया के पट्टी टुटलऽ छै
पौवा के बढ़लै परेशानी॥
दिनें चैन नै, रातें निनियाँ
सगठें सुनऽ नी धातिन तिनीयाँ
‘रानीपुरी’ लोर सें भरलऽ
कविता रचै छै कानी-कानी।