भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खट्टे बेर / अनिता मंडा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रतीक्षा की बेल पर
उगे हुए बेर हैं
उलाहनों के शब्द

तुम्हारी आहट पाकर
तोड़ लिये हैं
ये कच्चे बेर
कई दफ़ा

तुम्हारा पेट में
दर्द हो जाता है न
कच्चे बेर खाने से
इसलिए दरिया में बहा दिये

मछलियाँ चाव से खा रही हैं
इंतजार की घड़ियाँ!