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खड़ी लुगाइयां के मांह सुथरी श्यान की बहू / ज्ञानी राम शास्त्री

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खड़ी लुगाइयां के मांह सुथरी श्यान की बहू
पर थी कर्म हीन कंगाल किसान की बहू

गळ में सोने का पैंडल या हार चाहिए था
बिन्दी सहार बोरळा सब शिंगार चाहिए था
सूट रेशमी चीर किनारीदार चाहिए था
इसी इसी नै तो ठाडा घर बार चाहिए था
रुक्का पड़ता जो होती धनवान की बहू

चारों तरफ लुगाइयां की पंचात कर रही थी
सब की गेलां मीठी मीठी बात कर रही थी
बात करण म्हं पढ़ी लिखी नै मात कर रही थी
दीखै थी जणु सोलह पास जमात कर रही थी
बैठी पुजती जो होती विद्वान की बहू

मस्तानी आंख्यां म्हं मीठा प्यार दीखै था
गोरे रंग रूप म्हं हुआ त्योहार दीखै था
हट्टा कट्टा गात कसा एक सार दीखै था
नखरा रोब गजब का बेशुमार दीखै था
दबते माणस जो होती कप्तान की बहू

इज्जत आगै दौलत नै ठुकरावण वाळी थी
टोटे म्हं भी अपनी लाज बचावण वाळी थी
पतिव्रता नारा का फर्ज पुगावण वाळी थी
पीहर और सासरे नै चमकावण वाळी थी
“ज्ञानी राम “ जणु लिछमी थी भगवान की बहू