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खड़े रामजी निपट अकेले / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

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‘रामराज’ है
महल-द्वार पर
खड़े रामजी निपट अकेले

रही सूर्यकुल की मर्यादा उनके आड़े
बीच महल में बने हुए पशुओं के बाड़े

अवधपुरी में
रोज़ लग रहे
महाहाट के शाही मेले

सभागार में असुर पुरोहित हवन कर रहे
हर ताखे में धुआँ दे रहे दिये धर रहे

गाँव-गाँव में
रचे मंत्रियों ने
संकट परजा ने झेले

बढ़े राजकुल – उन्हें मंथरा-मति है व्यापी
सरयू-जल में आग लगी – संतों ने तापी

सिंधु-पार की
अप्सराओं के
लगते ‘कनक भवन’ में मेले