खण्ड-10 / यहाँ कौन भयभीत है / दीनानाथ सुमित्र
181
झूठ बोल कर ले रहा, जन से जन का वोट।
इक दिन ऐसा आयेगा, जन मारेगा चोट।।
182
बेटी तो वरदान है, मत समझें अभिशाप।
पर कठिनाई से मिले, समझदार माँ-बाप।।
183
महापुरुष ऊँचा वही, जिसके कर्म महान।
बच्चा-बच्चा मानता, उसको ही भगवान।।
184
रूप तुम्हारा सुंदरी, देख बढ़ा उन्माद।
वन उपवन या चंद्रमा, रहा नहीं कुछ याद।।
185
दोषी यही बसंत है, भटकाता मन देह।
विस्मृत-विस्मृत पाठ से, याद कराता नेह।।
186
गाँव शहर से आ रहा, जंगल का अहसास।
बहुत दूर है जा बसी, जो रहती थी पास।।
187
दुख की घड़ियाँ याद हैं, सुख की घड़ियाँ याद।
दोनों से मिलकर हुआ, जीवन जिंदाबाद।।
188
जीने के भी रास्ते, मरने की है राह।
बोलो मेरे यार तू, क्या है तेरी चाह।।
189
धन के भूखे लोग को, कब आया है चैन।
बेकल दिन है बीतता, बेकल बीते रैन।।
190
काम, क्रोध, मद, लोभ से, किसे मिली है मुक्ति।
बाद मृत्यु के प्राप्य है, सिर्फ मृत्यु ही युक्ति।।
191
वर न किसी को दो मदन, यही बड़ा अभिशाप।
यही कराता आ रहा, सतयुग से सब पाप।।
192
तेरी पूजा की बहुत, अब तो दो वरदान।
अर्ज यही तुम मत बनो, पत्थर के भगवान।।
193
जग-जीवन पर इस तरह, छाया रहे बसंत।
जैसे शीतल मन रखे, हर दुनियाबी संत।।
194
हर जीवन को सुख मिले, हर अधरों पर हास।
स्वर्ण नगर सबका बने, हो सुंदर आवास।।
195
कोई भूखा क्यों रहे, क्यों भोगेगा प्यास।
सब की धरती हो भली, भला-भला आकाश।।
196
सुबह, दोपहर, शाम सब, किया तुम्हारे नाम।
फिर भी मुझको रात में, मिला नहीं आराम।।
197
नव गुलाब गुलदाउदी, डाल-डाल कचनार।
सभी गा रहें हैं अभी, राग बसंत बहार।।
198
मरण काल आया सखे, अब क्यों बोलूँ झूठ।
नहीं मानने को रही, खुशी गई जो रूठ।।
199
दंत पीर से हूँ दुखी, कटि पीड़़ा में जोर।
खाँसी छोड़े ही नहीं, दुख मुँह रहा न मोड़।।
200
कल जो सब नजदीक थे, आज हो गये दूर।
नहीं बदलता दीखता, दुनिया का दस्तूर।।