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खण्ड-14 / यहाँ कौन भयभीत है / दीनानाथ सुमित्र

261
चहुँदिश राग बसंत है, आया माखन चोर।
कंश नहीं अब कृष्ण का, होगा सच्चा शोर।।

262
गले लगाने के लिए, कौन यहाँ तैयार।
सब का छोटा हो गया, दिल, घर औ परिवार।।

263
अब वंशी बजती नहीं, यमुना का तट मौन।
कोई भी कान्हा नहीं, राधा होगी कौन।।

264
इस रस्ते से अब नहीं, जाते नंद किशोर।
रात अँधेरी हर घड़ी, होती साँझ न भोर।।

265
वंशी वाला है नहीं, है उदास ब्रज धाम।
हरि प्रसाद से अब नहीं, चलता कोई काम।।

266
वही करेगा दोस्ती, जो लेगा दिलजीत।
जिसके दिल में आग है, जिसके दिल में प्रीत।।

267
मदद करो दे अश्रु ही, सूख गये ये नैन।
बिन बोले समझो सखी, अंतरमन के बैन।।

268
तन होता है फूल सा, मन होता है आग।
पर नारी हित विश्व है, सिर्फ विषैला नाग।।

269
नैना उम्र दराज है, पर देखे नव रूप।
तन निर्धन लेकिन हृदय, महामहल का भूप।।

270
राधा के गुण गा रहे, मगन-मगन घनश्याम।
राधा प्यारी बाबरी, जपे श्याम का नाम।।

271
नन्हीं बेटी फूल सी, गोद सिहासन स्वर्ण।
इसको मिलना चाहिए, निश्चित दानी कर्ण।।

272
हर बेटी में माँ बसी, बरसायेगी क्षीर।
नहीं बरसना चाहिए, उन आँखों से नीर।।

273
देना होगा पुरुष को, हर नारी को मान।
तब ही होगा स्वर्ग-सा, अपना सकल जहान।।

274
पूछ रही है चाँदनी, क्यों तारों की जात।
दिल पर उसके लग रहा, जैसे बज्राघात।।

275
खड़ी फसल पर चोट कर, चला गया तूफान।
ओला वर्षा ले गए, हैं किसान के प्राण।।

276
विद्या बल से हो बली, धन बल नहीं समान।
धन की इच्छा क्यों करे, जो होगा विद्वान।।

277
कलम खूब गर्वित हुई, लिख-लिख दोहा छंद।
पाया करता हूँ सदा, मैं अनुपम आनन्द।।

278
जाति धर्म से तंग है, भारत देश महान।
मिटा दिया इसने रहम, रहा नहीं रहमान।।

279
रोटी की चिंता करो, जा ढूँढो व्यापार।
सदियों से मिलती रही, महाहार पर हार।।

280
तमस छा रहा हर तरफ, कहीं न जलता दीप।
माँगे पर घोंघा नहीं, मिले न मोती-सीप।।