खण्ड-18 / सवा लाख की बाँसुरी / दीनानाथ सुमित्र
341
नेताजी को चाहिये, बाँट-बाँट कर खाय।
वरना ले संन्यास वो, वन तप करने जाय।।
342
नेताजी को चाहिये, रखें वस्त्र पर ध्यान।
जनता नंगी देह है, जीती बिना मकान।।
343
नेताजी का चढ़ गया, है दुनिया पर रंग।
सब ही अंधे हो गए, राष्ट्रवाद के संग।।
344
नेताजी ने ग्लोब के, किये हजारों खंड।
बँटे हुये को दे रहे, तरह-तरह के दंड।।
345
नेताजी बतलाइये, क्यों बढ़ती है तोंद।
कुर्सी से चिपके रहें, लगा रहे हैं गोंद।।
346
नेता का संकल्प था, पर्वत-सा संकल्प।
चुहिया भी पकड़ी नहीं, निकला झूठा गल्प।।
347
नेता ने निज पूत का, तिलक लिया नौ लाख।
यही लोग कानून को, रखते आये ताख।।
348
नेता संडे को कहें, अपने मन की बात।
सुनने वालों के नहीं, थाली में है भात।।
349
नेताजी के पास है, बंदूकी आवाज।
जाने किस पर गिर पड़े, कब शोलों-सी गाज।।
350
नेता तेरे राज में, शिखर चढ़ा अपराध।
संसद तक अब यह पहुँच, अर्थ रहा है साध।।
351
नेता के वरदान से, भस्मासुर बलवान।
संविधान से है परे, इन सब का भगवान।।
352
नेताओं के हाथ में, अपराधी की डोर।
इसीलिये जनतंत्र के, प्राण हुए कमजोर।।
353
नेता योगी हो गया, भोगी हुआ हलाल।
योगी का दुर्भाग्य है, घर ले आया माल।।
354
नेताजी को भय नहीं, जनता करती माफ।
कितना काला हो बदन, कालर दिखता साफ।।
355
नेता तू आदेश कर, जुट जायेगी भीड़।
आज तलक इस कुंभ ने, बदली कब तस्वीर।।
356
नेताजी के बजट में, देश दिखे खुशहाल।
दस जन जाते ताज में, नब्बे ढूँढ़ें दाल।।
357
नेता, निर्धन के लिये, रहते हैं बेचैन।
इन्द्र-भवन में बीतती, इनकी पूरी रैन।।
358
नेताजी फोटो खिंचा, करते हैं परचार।
स्वच्छ रखो घर गाँव को, इसमें भी व्यापार।।
359
नेता ने सिखला दिया, सकल राममय मंत्र।
राम राममय हो गया, भारत का जनतंत्र।।
360
नेता के सिर पर चढ़ा, विकट राम का भूत।
रोगहीन है देश अब, पी-पी कर गोमूत।।