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खण्ड-3 / मन्दोदरी / आभा पूर्वे

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एक दिश
हमरोॅ बाबू आपनोॅ सेना लै
दानवेन्द्र के सेना साथें
लड़ी रहलोॅ छेलै
दूसरो दिश
दानवेन्द्र मकराक्ष साथें
वाश्रवण रावण
हमरोॅ होयवाला पति।
अद्भुत-अद्भुत
रक्षांधिप के हौ तेज
हौ वीरता,
आय तांय नै देखलेॅ छेलां ।

दानवेन्द्र
जेकरोॅ देहोॅ में
तीनों लोक के ताकत
बसै छेलै,
ऊ रणभूमि में
छटपटाय केॅ
गिरी पड़लोॅ छेलै
रक्षाधिप के प्रहार सें।
दानवेन्द्र मकराक्ष के मुँह से
निकली रहलोॅ छेलै
प्राण के पिटारा
विलीन होय गेलोॅ छेलै
हवा, पानी, आकाश, माँटी
आरो आगिन में ।
यैमें कांही कोय झूठ नै
हम्में देखलेॅ छियै
आपनोॅ आँखी सें
हौ सबटा दिरीश,
महाकाल जेन्होॅ नाचतें
मुनिपुत्रा वैश्रवण रावण केॅ
तभिये तेॅ
जखनी हमरोॅ बाबू
हमरा लेॅ जाय रहलोॅ छेलै
राक्षाधिप के सम्मुख,
हमरोॅ मनोॅ में
केन्होॅ उछाह छेलै
जना हमरोॅ गोड़ोॅ में
सौ-सौ पंख लागी गेलोॅ रहेॅ,
हुलसली-हुलसली
पहुँची गेलोॅ छेलियै
रक्षाधिप के सामना;
किशोर मनोॅ के उछाह केॅ
केन्हौं नै
रोकेॅ पारलेॅ छेलै
हमरोॅ लाज आरो लेहाज ।
आरो वहा दिन
हम्में जानेॅ पारलेॅ छेलियै
आपनोॅ जन्म-कथा
कि के छेकै मन्दोदरी ?
के छेली हमरी माय ?
कत्तेॅ दुखी छै हमरोॅ बाबू !
केकरोॅ दोष ?
हमरी माय के
आकि हमरोॅ बाबू के ही ?
नै, नै
हमरी मैये कहीं-न-कहीं
दोखी छेलै।
आखिर
एत्तेॅ स्वेच्छचारिता
एत्तेॅ देहोॅ के वशीभूत रहबा
मर्यादा के रोआं रोआं केॅ
दुखैवै ही तेॅ छेकै।

नै समझेॅ पारलकी
हमरी मांय
कि सब्भे स्वतंत्राता के
एक सीमा होय छै
जेकरोॅ बाहर जैथैं
स्वतंत्रातो
कलुषित होय जाय छै
ई बात मांय बुझियो जैतियै
जों ऊ दानव वंश के होतियै
दानव कुल
जेकरोॅ मर्यादा
बात-व्यवहार
चाल-चलन
रीति-रिवाज
रूप-शृंगार
सौंसे दुनियाँ में अद्भुत छै,
नै करै पारेॅ
कोय्योॅ जाति
एकरोॅ बराबरी
है हमरोॅ घमण्ड नै
जलदेवता के अलकापुरियो
एकरोॅ चर्चा सें अघावै छै।