खण्ड-4 / सवा लाख की बाँसुरी / दीनानाथ सुमित्र
61
माँ जबतक मेरी रही, था मैं बाल गोपाल।
माँ के जाते वृद्ध-सा, हुआ देह बदहाल।।
62
माँ ने जो भोजन दिया, अद्भुत उसका स्वाद।
माँ जीवित चाहे नहीं, जीवित माँ की याद।।
63
माँ बिन तुलसी सूखती, माँ बिन सूना द्वार।
माँ केवल जननी नहीं, माँ तो है संसार।।
64
लगता माँ है पूछती, हर, क्षण मेरा हाल।
माँ सम रख पाया कहाँ, कोई मेरा ख्याल।।
65
जीवन है जिसने दिया, पाला है परिवार।
उस माँ के हिस्से नहीं, क्यों अब रोटी चार।।
66
जीवन भर देती रही, जिसको प्यार दुलार।
उस माँ को देने लगा, बेटा आज उधार।।
67
माँ ईश्वर की कल्पना, या ईश्वर का रूप।
माँ जिसके भी पास है, वह दुनिया में भूप।।
68
किन शब्दों से मैं करूँ, माता का गुणगान।
माँ की गोदी के लिए, बने मनुज भगवान।।
69
किससे मैं उपमा करूँ, माँ ही शब्द महान।
माँ कह देवी को दिया, सकल जगत ने मान।।
70
माँ मैं तेरी याद में, होता हूँ बेचैन।
कहाँ गई ममतामयी, बरस रहे हैं नैन।।
71
उम्र छिहत्तर हो गई, पर बालक नादान।
तुझे सुमित्तर खोजता, आ माँ रख फिर ध्यान।।
72
आई है दीपावली, लेकर नव उल्लास।
छाया चारों ओर है, अनुपम दिव्य प्रकाश।।
73
जलते दीप कतार में, देते ये सन्देश।
दूर करें मिलकर सभी, आपस के सब द्वेष।।
74
कहीं पटाखे छूटते, जलता कहीं अनार।
खुशियाँ लेकर आ गया, दीपों का त्योहार।।
75
धीरे-धीरे जल उठे, देखो दीप अनेक।
आज धरा औ व्योम का, रूप हो गया एक।।
76
दीपों का त्यौहार है, उजियारे के नाम।
इस दिन वन से लौटकर, आए थे श्री राम।।
77
दीपों से घर-घर सजा, ज्योतिर्मय घर द्वार।
धरती पर आया उतर, तारों का संसार।।
78
नारायणी, गणेश की, पूजा होती आज।
इनके आशीर्वाद से, फलते हैं सब काज।।
79
उत्सव और उमंग का, दीपों का त्योहार।
नहीं पटाखे से करो, दूषित घर संसार।।
80
उत्सव मना प्रकाश का, सजा सकल परिवेश।
धन लाती है स्वच्छता, देती यह सन्देश।।