खण्ड-5 / यहाँ कौन भयभीत है / दीनानाथ सुमित्र
81
आया जितनी बार है, सम्मुख मुआ चुनाव।
उतने ही गहरे हुए, जन-जीवन के घाव।।
82
यूँ हीं लगती खूब हो, क्या करना श्रृंगार।
वस्त्राभूषण से भला, निर्मल तेरा प्यार।।
83
सच में देश गरीब है, कहिए नहीं अमीर।
करना खर्च चुनाव पर, है गंदी तस्वीर।।
84
सब को जाना एक दिन, जब आएगी शाम।
दुनिया बोलेगी भला, कर लो अच्छे काम।।
85
राजनीति सेवा नहीं, नहीं आज यह त्याग।
यह तो समिधा चाहती, बनी हवन की आग।।
86
जो चाहा था मिल गया, मिटी न फिर भी चाह।
चाह मरण पर ही मिटे, यही एक ही राह।।
87
मोहन मोह न कीजिए, यह जग है निर्मोह।
यहाँ प्रीत के साथ भी, होता रहता द्रोह।।
88
जिओ जगत के वास्ते, मरो जगत के साथ।
जन्नत यहीं बनाएँगे, तेरे दोनों हाथ।।
89
उनको तुम भूलो नहीं, करो शहादत याद।
जिनके खूँ में डूब कर, मुल्क हुआ आजाद।।
90
यदि ख़ुद को समझे अगर, तू शब्दों का वीर।
तुलसी तू बनकर दिखा, बनकर दिखा कबीर।।
91
बँटे हुए हम देश में, नहीं हो सके एक।
एक न होंगे जब तलक, काम न होगा नेक।।
92
मंदिर-मस्जिद बन रहे, बना खुदा-भगवान।
मगर बना क्या ये सके, इंसा को इंसान।।
93
भारत धर्म प्रधान है, धर्म यहाँ का ज्ञान।
यहाँ आदमी कुछ नहीं, सब कुछ है भगवान।।
94
सरयू तट के राम तुम, यमुना के नंदलाल।
संग रहो तुम विश्व के, राखो रंग गुलाल।।
95
बच्चों आपस में नहीं, रखना तुम दुर्भाव।।
धरती पर ही स्वर्ग है, अगर प्रेम का भाव।।
96
गद्दी की चाहत लिए, सभी रहे हैं दौड़।
भारत है रोटी नरम, भीमशेन का कौर।।
97
मुझको सच मालूम है, सच्ची मेरी राह।
इसीलिए अबतक किया, मैंने नहीं गुनाह।
98
कष्ट हमें देते रहे, भक्त और भगवान।
सोचो, करो विचार नित, तब होगा कल्याण।।
99
सत्ता हमें न चाहिए, सत्ता की सौगंध।
यही बनाती आ रही, श्रेष्ठ जनों को अंध।।
100
जान रहे इस बात को, झूठ मचाए शोर।
फिर भी चीखे चोर ही, सच फिर भी कमजोर।।