भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खद्दर में खटमल / इंदिरा व्यास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खद्दर में खटमल
गदर मचावै
देस नै खावै
ताबै किणीं रै
कदैई नीं आवै
आं री बंसबेल
बधती जावै
बधती जावै
बोटां री कळ सूं निकळै
कळ में ई मर जावै
पण आं नै मारण
आगै कोई नीं आवै।