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खरगोश / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
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देखोॅ जंगल के खरगोश
बित्ता भर के; केन्होॅ जोश।
फुदकै-फाँदै; सरपट जाय
खूब मनोॅ सें घासे खाय।
धरती पर को उजरोॅ मेघ?
की जंगल केॅ देलोॅ नेग?
मानी लै घर-घर के पोष
हेने जंगल के खरगोश।