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खरगोश / लक्ष्मीनारायण 'पयोधि'
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नरम-गुदगुदा, प्यारा-प्यारा,
जंगल की आँखों का तारा।
नन्हा-नन्हा, नटखट-चंचल,
ज्यों कपास का उड़ता बादल।
दिन भर उछल-कूद है करता,
मस्ती में चौकड़ियाँ भरता।
लंबे कान, लाल हैं आँखें,
हर आहट पर दुबके-झाँके।
झालर वाली पूँछ उठाकर,
घूमे आवारा खरगोश।
हरी दूब को कुतर-कुतरकर
खाए बेचारा खरगोश।