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खरपत मारे / विजेन्द्र
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छोड़ सरग तुम धरती आओ
रूप
रंग
रस अनुपम पाओ
अपना करम अटल है भाया
खत जो खोया फिर न पाया ।
मानुख चले
तो धरती डोले
सबद अरथ सम
क्रिया बोले ।
जीने की इच्छा प्रबल है
लिखता काल सिहा पटल है ।
बेल की पूँछ
मरोड़ हकारे
अपने बल ही
करपत मारे ।
बीजा फूटल
कल्ला ऊगा
कहता हूँ
पत्थर मूँगा ।