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खसलॉ जाय जिनगी रोॅ होने सब साल / अमरेन्द्र

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खसलोॅ जाय जिनगी रोॅ होने सब साल
जेना ओहारी सेँ बरसा रोॅ बुन।

कत्तेॅ सजैलाँ ऊ नीनोॅ के सपना
मुट्ठी मेँ सौंसे समुन्दर के अँटना
लोॅर-जोॅर आपनोॅ-पराया परैलै
हाथोॅ मेँ चुरूवे भर पानी-टा ऐलै।

आँखी मेँ आवै छै एक्के टा फोटू
विलखै अयभाती-नै पावी सगुन।

जोड़ी-जोड़ी केनखोॅ जे घोसला बनैलाँ,
आरो ओधरावै लेॅ सँझकी जे ऐलाँ,
जिनगी रोॅ सुख-दुख केॅ जेन्है मोॅन थाहै
तिनका मेँ फाँसी कोय पकड़ै लेॅ चाहै।

बीछी-बीछी दावै छी किंछा रॉे ठोठोॅ
सोरी-धोॅर चिलका चटावै छी नुन।

-आज, पटना, 24 सितम्बर, 1996