भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़त जो तुमने लिखा नहीं होता / आलोक यादव
Kavita Kosh से
ख़त जो तुमने लिखा नहीं होता
ज़ख़्म दिल का हरा नहीं होता
अपना अपना ख़याल है लेकिन
दर्द, दिल की दवा नहीं होता
तूने चाहा नहीं मुझे वरना
इस ज़माने में क्या नहीं होता
बेख़बर तुम रहो परेशाँ हम
यूँ कोई सिलसिला नहीं होता
दाग़ ही दाग़ जो दिखाए, वो
आईना आईना नहीं होता
सब हैं हालात के फ़रेब ‘आलोक’
कोई खोटा, खरा नहीं होता
दिसम्बर 2013