भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़फा / मोहम्मद अलवी
Kavita Kosh से
कभी दिल के अंधे कुंवे में पड़ा चीखता है
कभी खून में तैरता डूबता है
कभी हड्डियों की सुरंगों में बत्ती जला कर यूं ही घूमता है
कभी कान में आके चुपके से कहता है
'तू अब तलक जी रहा है?'
बड़ा बे-हया है
मेरे जिस्म में कौन है यह
जो मुझ से खफा है