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ख़याल इक नाजुक सा / सुस्मिता बसु मजूमदार 'अदा'
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नाजुक सा है ख़याल इक
साँसों का है करम
जो आह भी मैं भर लूँ तो
बन जाए वो मरहम
नाजुक सा है ख़याल इक।
कुछ दोस्ती से ज्यादा
कुछ पयार से है कम
ये जो तेरा मेरा रिश्ता
है आग पे शबनम
नाजुक सा है ख़याल इक।
तू जो बांहों में समेटे
मेरी सांसे जाएं थम
राहत है नाम रिश्ते का
आहट पे आँखे नम।
हमराज़ तू मेरा
हमख़याल है सनम
बिन तेरे सुकून भी नहीं
है चैन भी भरम
नाजुक सा है ख़याल इक।
पत्तों की सरसराहट
शाखों पे फूल कम
ये है जिन्दगी का झूठा सच
तू नहीं मेरा हमदम
नाजुक सा है ख़याल इक।