भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ाक हूँ ऐतबार की सौगंद / 'सिराज' औरंगाबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़ाक हूँ ऐतबार की सौगंद
मुज़्तरिब हूँ क़रार की सौगंद

मिस्ल-ए-आईना पाक-बाज़ी में
साफ़ दिल हूँ ग़ुबार की सौगंद

हौज़-ए-कौसर सीं प्यास बुझती नहीं
उस लब-ए-आब-दार की सौगंद

मोतबर नहीं जमाल ज़ाहिर का
गर्दिष-ए-रोज़-गार की सौगंद

ज़िंदगी ऐ ‘सिराज’ मातम है
मुझ कूँ शम-ए-मज़ार की सौगंद