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ख़ाक है! ख़ाक में मिल जाएगी मेरी मिट्टी / अमित शर्मा 'मीत'
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ख़ाक है! ख़ाक में मिल जाएगी मेरी मिट्टी
लोग देखेंगे मिरे बाद ये जलती मिट्टी
अब तेरे हाथ में सब कुछ है मेरे कूज़ागर
कोई आकार दे या छोड़ दे गीली मिट्टी
कल अजब ख़्वाब दिखाया था मुझे आँखों ने
मैं कहीं था ही नहीं चार सू मिट्टी मिट्टी
इतनी सोंधी थी वह ख़ुशबू कि बताऊँ क्या मैं
रात बारिश में किसी फूल-सी महकी मिट्टी
आज बाज़ार में देखा जो खिलौने वाला
इक नये रूप नये रंग में देखी मिट्टी
उससे बोला कि तेरे पास ही आना है मुझे
तब कहीं जाके मिरे पाँव से लिपटी मिट्टी
बाद मरने के खुला राज़ ये मुझ पर यारो
'मीत' साँसों के बिना जिस्म है ख़ाली मिट्टी