भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ाली तार / हरिओम राजोरिया
Kavita Kosh से
कैसे-कैसे रो-झींककर मिली आज़ादी
आज़ादी मिलते ही मची मार-काट
सिर्फ दो-चार दिन ही रही आसपास
फिर तार पर बैठी चिड़िया-सी फुर्रऽऽ हो गई
गुण्डे, भक्त, साहूकार, धन्नासेठ हो गए आज़ाद
हमारे हिस्से में आया ख़ाली तार