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ख़ाहिश की ख़ुनक ख़न्दक़ें गहराई बड़ी शीन / आदिल मंसूरी
Kavita Kosh से
ख़ाहिश की ख़ुनक ख़न्दक़ें गहराई बड़ी शीन
लज़्ज़त का लहू सोख के लहराई बड़ी शीन
छत चांदनी शब-शोलगी तन्हाई बड़ी शीन
देखा जो अलिफ़ सामने घबराई बड़ी शीन
उतरे हुए कपड़ों पे चढ़े चांद का जादू
आईने में मुंह देख के शरमाई बड़ी शीन
अंगुश्त रखी नुक़्ते पे जब मीम ने ‘आदिल’
डोई की तरफ़ देख के इतराई बड़ी शीन