भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ुदकुशी अंजाम होकर रह गई / दीपक शर्मा 'दीप'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़ुदकुशी अंजाम होकर रह गई
 तिश्नगी इन्आम होकर रह गई

मैं इधर बदनाम होकर रह गया
  तू उधर बदनाम होकर रह गई

एक लड़की थी शगुफ़्ता,याद है?
 नाम था गुमनाम होकर रह गई

ज़िंदगी जो ज़िंदगी थी, नीमशब
 मौत की हमनाम होकर रह गई

सुब्ह सी उठ्ठी किसी से थी उमेद
के अचानक शा म होकर रह गई

 ये सुकूं दिन-रात मेहनत में मिटा
वो ख़लिश आराम होकर रह गई

आशिक़ी में दीप पूछो क्या हुआ,
  नींद उस के ना म होकर रह गई