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ख़ुदा के वास्ते बहने दो तुम इन मेरे अश्क़ों को / शोभा कुक्कल

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ख़ुदा के वास्ते बहने दो तुम इन मेरे अश्क़ों को
मुझे ये चाहिए इक हार अश्क़ों का पिरोने को

अजब क्या है इसी बरकत से मेरे पाप धुल जाएं
ज़रा रूम फर्श मंदिर का मुझे अश्क़ों से धोने दो

बता दे जाके दरिया की रवानी को कोई इतना
नहीं है पास अपने अब कोई कश्ती डुबोने को

किसानों की जो हालत है सभी के दिल पे-रौशन है
कहां से बीज ये लाएंगे अपनी फ़स्ल बोने को

अज़ल से हाथ खाली है, मिरा दामन भी खाली है
हजूरी में नहीं है पास मेरे, कुछ भी ढोने को

चलो कुछ देर खेलें मुस्कुराएं गुनगुनाएं हम
पड़ी है सामने इक उम्र 'शोभा' रोने धोने को।