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ख़ुद की कभी नज़र से सामना नहीं होता / डी. एम. मिश्र
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ख़ुद की कभी नज़र से सामना नहीं होता
सच कौन बोलता जो आइना नहीं होता
ओठों पे क्या जनाब के ताले जड़े हुए
खुलकर नहीं हँसे तो वो हँसना नहीं होता
उल्फ़त से बड़ी चीज़ है दुनिया में कोई और
उल्फ़त में मर गये तो वो मरना नहीं होता
सपने जो देखिये तो उन्हें सच भी कीजिए
पल में जो टूट जाय वो सपना नहीं होता
रिश्ते में मानता हूँ कि बेहद क़रीब है
पैसे से है नाता तो वो अपना नहीं होता
तारीकियों की धुंध में गुम हो गया होता
क़िस्मत में अगर आप से मिलना नहीं होता