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ख़ुद को शरर शुमार किया और जल बुझे / सहबा अख़्तर
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ख़ुद को शरर शुमार किया और जल बुझे
इक शोला-रूख़ से प्यार किया और जल बुझे
इक रात में सिमट गई कुल उम्र-ए-आरज़ू
इक उम्र इंतिज़ार किया और जल बुझे
पिछले जनम की राख से ले कर नया जनम
फिर राख को शरार किया और जल बुझे
हम भी नसीब से जो सितारा-नसीब थे
सूरज का इंतिज़ार किया और जल बुझे
हम रौशनी-ए-ताबा से शोला-फ़रोज़ थे
हर तीरगी पे वार किया और जल बुझे