भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ुद गिरेबान में झाँकिए-झाँकिए / विनोद तिवारी
Kavita Kosh से
ख़ुद गिरेबान में झाँकिए-झाँकिए
आप कितने सही देखिए-देखिए
झूठ मतभेद आपस में कड़वाहटें
क्या हो अंजाम फिर सोचिए-सोचिए
भीड़ में रास्ता कोई देगा नहीं
आगे आना है ख़ुद आइए-आइए
होंगी हल मुश्किलें देश की एक दिन
कुछ सकारात्मक कीजिए-कीजिए
हर दिशा डूब जाएगी संगीत में
आप भी स्वर मिला गाइए -गाइए