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ख़ुद में भी तो डूबा कर / मोहम्मद इरशाद

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ख़ुद में भी तो डूबा कर
कभी तो दुनिया भूला कर

साहिल सूने होते हैं
बीच समन्दर उतरा कर

इतनी भीड़ नहीं वाजिब
घर से तन्हा निकला कर

अच्छा कहलाने की ज़िद
काम कोई तो अच्छा कर

झूठ में है माहिर तू यार
लेकिन सच भी बोला कर

सिमटा-सिमटा रहता है
ख़ुशबू बन कर फैला कर