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ख़ुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की / गोपालदास "नीरज"

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ख़ुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की
खिड़की खुली है फिर कोई उन के मकान की

हारे हुए परिंद ज़रा उड़ के देख तू
आ जाएगी ज़मीन पे छत आसमान की

ज्यूँ लूट लें कहार ही दुल्हन की पालकी
हालत यही है आज कल हिन्दोस्तान की

नीरज से बढ़ के और धनी कौन है यहाँ
उस के हृदय में पीर है सारे जहान की