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ख़ुशी याद आई न ग़म याद आए / सिकंदर अली 'वज्द'
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ख़ुशी याद आई न ग़म याद आए
मोहब्बत के नाज़ ओ निअम याद आए
ये क्यूँ दम-ब-दम हिचकियाँ आ रही हैं
किया याद तुम ने कि हम याद आए
गुलों की रविश देख कर गुलसिताँ में
शहीदों के नक़्श-ए-क़दम याद आए
बुरों का बहुत नाम जपती है दुनिया
जो अच्छे ज़ियादा थे कम याद आए
दम-ए-नज़्अ जूँही अजल मुस्कुराई
अचानक तुम्हारे कर्म याद आए
मुसीबत में भी बारहा ‘वज्द’ मुझ को
ख़ुदा जानता है सनम याद आए