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ख़ूबियाँ देखिए सिकन्दर की / हरि फ़ैज़ाबादी
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ख़ूबियाँ देखिए सिकन्दर की
बात तब कीजिए मुक़द्दर की
तुमको कुछ भी परख नहीं है क्या
तुलना हीरे से होगी पत्थर की
पाप का हर घड़ा वो फोड़ेगा
वक़्त को बस तलाश अवसर की
दोस्ती, दुश्मनी या शादी हो
बात अच्छी है बस बराबर की
जब तलक वक़्त साथ देता है
आँखें खुलती नहीं सितमगर की
दूर अब वो समय नहीं है जब
धरती पूछेगी ज़ात अम्बर की
घर भरा कैसे हम कहें उसका
जब कमी उसमें ढाई अक्षर की