भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ूब बरसे मेघ सागर के क़रीब / विनोद तिवारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़ूब बरसे मेघ सागर के क़रीब
और सारे खेत सूखे रह गए

योजनाएँ आपने बाँटी तो थीं
हाँ मगर हम लोग भूखे रह गए

शामियाने गाँव पर ताने गए
चीथड़े हो कर सलूखे रह गए

मंच पर नवनीत सारा खप गया
गाल श्रोताओं के रूखे रह गए

सब सफलताएँ तो बाधा दौड़ थीं
हम ज़रा चूके तो चूके रह गए