भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़्वाब आँखों में जितने पाले थे / अभिषेक कुमार अम्बर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़्वाब आँखों में जितने पाले थे
टूटकर वो बिखरने वाले थे।

जिनको हमने था पाक दिल समझा
उन्हीं लोगों के कर्म काले थे।

पेड़ होंगे जवां तो देंगे फल,
सोचकर बस यही तो पाले थे।

सब ने भर पेट खा लिया खाना
माँ की थाली में कुछ निवाले थे।

आज सब चिट्ठियां जला दीं वो
जिनमें यादें तेरी सँभाले थे।

हाल दिल का सुना नहीं पाये
मुँह पे मज़बूरियों के ताले थे।