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ख़्वाब इन आँखों से अब कोई चुरा कर ले जाये / बशीर बद्र

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ख़्वाब इस आँखों से अब कोई चुरा कर ले जाये
क़ब्र के सूखे हुये फूल उठा कर ले जाये

मुंतज़िर<ref>जो किसी के इंतज़ार में हो</ref> फूल में ख़ुश्बू की तरह हूँ कब से
कोई झोंकें की तरह आये उड़ा कर ले जाये

ये भी पानी है मगर आँखों का ऐसा पानी
जो हथेली पे रची मेहंदी उड़ा कर ले जाये

मैं मोहब्बत से महकता हुआ ख़त हूँ मुझ को
ज़िन्दगी अपनी किताबों में दबा कर ले जाये

ख़ाक इंसाफ़ है नाबीना<ref>नेत्रहीन</ref> बुतों के आगे
रात थाली में चिराग़ों को सजा कर ले जाये

शब्दार्थ
<references/>