भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़्वाब जैसे सजाओगे हमको / स्मिता तिवारी बलिया
Kavita Kosh से
ख़्वाब जैसे सजाओगे हमको
क्या नयन में बसाओगे हमको।
खूब परिचय बढ़ा रहे हमसे
क्या ठिकाने लगाओगे हमको।
खा रहे हो कसम वफ़ा की पर
है यक़ी आजमाओगे हमको।
आज जितना उठाये हो सर पर
एक दिन खुद गिराओगे हमको।
पूछती हैं ग़ज़ल बताओ तो
क्या अक़ीदत से गाओगे हमको।
स्मिता खा गिरे जो ठोकर तो
क्या भला तुम उठाओगे हमको।